डूबते को बचाने वाले व्यक्ति से जो मौत के सामने अपनी जिन्दगी की जंग हार गया

अच्छे लोग हमारे बीच से ही है बस पहचान समय करवाता है मिलिए डूबते को बचाने वाले व्यक्ति से जो मौत के सामने अपनी जिन्दगी की जंग हार गया
यमुनानगर, 22 सितम्बर (): डूबने वालों को बचाने के लिए संघर्ष करता हुआ सुरेंद्र पहलवान अपनी जिंदगी की जंग हार गया। क्रीड़ा भारती के प्रदेश उपाध्यक्ष डॉ उमेश प्रताप वत्स ने बताया कि आज तीसरे दिन यमुनानगर से लगभग 40 किलोमीटर दूर इंद्री में मिला सुरेंद्र का शव।
उल्लेखनीय है कि सुरेन्द्र सिसाय ने 16 वर्ष पूर्व गुरु नानक खालसा कॉलेज यमुनानगर में ही स्पोट्र्रस में ग्रेजुएशन और पोस्ट ग्रेजुएशन की। कुछ स्कूलों में बतौर डीपीई भी कार्य किया। जिला स्तर पर प्रतिवर्ष कुश्ती प्रतियोगिताओं में रैफ्री का कार्य भी बखूबी निभाया था। क्रीड़ा भारती खेल पखवाड़े के अंतर्गत कई बार कुश्ती प्रतियोगिता के आयोजन में भरपूर सहयोग किया करता था। उसकी अकस्मात मृत्यु से क्रीड़ा भारती के सदस्य अत्यंत दुखी हैं। डॉ वत्स ने कहा कि सुरेन्द्र स्वभाव से ही परोपकारी था। यारों का यार सुरेंद्र हर समय दोस्तों के दुख-सुख में खड़ा रहता था। उसका यह स्वभाव ही उसे गोताखोर बनाने के लिए प्रेरित कर गया। दूसरे के काम आना ही जीवन है, इस बात को समझते हुए सुरेन्द्र ने अनेकों युवाओं को डूबने से बचाकर नया जीवन जीने का अवसर प्रदान किया। रविवार को भी जब अपने मामा की अस्थियां बहाते हुए सत्येंद्र का पैर फिसल गया तो सुरेंद्र तुरंत किश्ती लेकर उसको बचाने की मंशा से नहर में उतर गया। किंतु झालों के थपेड़ों से किश्ती के पलट जाने पर वह सभी डूबने वालों को बचाने का प्रयास करता रहा किंतु इस कशमकश में वह बूरी तरह से थक गया। यह भी अनुमान है कि उसके सिर में चोट लगी होने के कारण वह बाहर निकलने का सफल प्रयास नहीं कर पाया। डॉ वत्स ने बताया कि 20 अक्तुबर को सुरेंद्र विवाह बंधन में बंधने वाला था। वैवाहिक जीवन के शुरु होने से पहले ही उसकी जीवनलीला लापरवाही के कारण समाप्त हो गई। सुरेंद्र के दोस्त अमरसिंह पहलवान का कहना है कि यदि कोई अन्य गोताखोर सुरेंद्र के बैकअप में होता तो आज वह हमारे बीच में जीवित होता। परमीत पहलवान ने कहा कि सुरेंद्र की मौत ने सभी खेल प्रेमियों को झकझोर कर रख दिया है।डॉ वत्स ने कहा कि सुरेन्द्र स्वभाव से ही परोपकारी था। यारों का यार सुरेंद्र हर समय दोस्तों के दुख-सुख में खड़ा रहता था। उसका यह स्वभाव ही उसे गोताखोर बनाने के लिए प्रेरित कर गया। दूसरे के काम आना ही जीवन है, इस बात को समझते हुए सुरेन्द्र ने अनेकों युवाओं को डूबने से बचाकर नया जीवन जीने का अवसर प्रदान किया। रविवार को भी जब अपने मामा की अस्थियां बहाते हुए सत्येंद्र का पैर फिसल गया तो सुरेंद्र तुरंत किश्ती लेकर उसको बचाने की मंशा से नहर में उतर गया। किंतु झालों के थपेड़ों से किश्ती के पलट जाने पर वह सभी डूबने वालों को बचाने का प्रयास करता रहा किंतु इस कशमकश में वह बूरी तरह से थक गया। यह भी अनुमान है कि उसके सिर में चोट लगी होने के कारण वह बाहर निकलने का सफल प्रयास नहीं कर पाया। डॉ वत्स ने बताया कि 20 अक्तुबर को सुरेंद्र विवाह बंधन में बंधने वाला था। वैवाहिक जीवन के शुरु होने से पहले ही उसकी जीवनलीला लापरवाही के कारण समाप्त हो गई। सुरेंद्र के दोस्त अमरसिंह पहलवान का कहना है कि यदि कोई अन्य गोताखोर सुरेंद्र के बैकअप में होता तो आज वह हमारे बीच में जीवित होता। परमीत पहलवान ने कहा कि सुरेंद्र की मौत ने सभी खेल प्रेमियों को झकझोर कर रख दिया है।