#राजकुमारी_रत्नावती
#जैसलमेर #नरेश #महारावल #रत्नसिंह ने #जैसलमेर #किले की रक्षा अपनी पुत्री रत्नावती को सौंप दी थी…
इसी दौरान दिल्ली के बादशाह अलाउद्दीन की सेना ने किले को घेर लिया जिसका सेनापति मलिक काफूर था….किले के चारों ओर मुगल सेना ने घेरा डाल लिया किंतु राजकुमारी रत्नावती इससे घबराईं नहीं और सैनिक वेश में घोड़े पर बैठी किले के बुर्जों व अन्य स्थानों पर घूम-घूमकर सेना का संचालन करती रहीं… अतत: उसने सेनापति काफूर सहित 100 सैनिकों को बंधक बना लिया…..
सेनापति के पकड़े जाने पर मुगल सेना ने किले को घेर लिया.. किले के भीतर का अन्न समाप्त होने लगा.. राजपूत सैनिक उपवास करने लगे…रत्नावती भूख से दुर्बल होकर पीली पड़ गईं किंतु ऐसे संकट में भी राजकुमारी रत्नावती द्वारा राजधर्म का पालन करते हुए अपने सैनिकों को रोज एक मुट्ठी और मुगल बंदियों को दो मुट्ठी अन्न रोज दिया जाता रहा….
अलाउद्दीन को जब पता लगा कि जैसलमेर किले में सेनापति कैद है और किले को जीतने की आशा नहीं है तो उसने महारावल रत्नसिंह के पास संधि-प्रस्ताव भेजा… राजकुमारी ने एक दिन देखा कि मुगल सेना अपने तम्बू-डेरे उखाड़ रही है और उसके पिता अपने सैनिकों के साथ चले आ रहे हैं. मलिक काफूर जब किले से छोड़ा गया तो उसने कहा- ”यह राजकुमारी साधारण लड़की नहीं, यह तो वीरांगना के साथ देवी भी हैं”… इन्होंने खुद भूखी रहकर हम लोगों का पालन किया है… ये पूजा करने योग्य आदरणीय हैं….
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