लार्ड डलहौजी की हड़पनीति ने झांसी को अंग्रेजों के आधीन होने पर बाध्य कर दिया । दत्तक पुत्र दामोदर राव को डलहौजी ने राज्य का राजा मानने से साफ मना कर दिया और झांसी को अपने कब्जे में कर लिया ।

महारानी लक्ष्मीबाई

” छबीली , मणिकर्णिका , मनु
अनछुये पहलुओं पर द्रष्टि ……

1 रानी के ख़ास वफादार ,सेनापति एवम मुख्य तोपची ..
गोसखां

2 विरसामुन्डा , वसुदेव बलदेव , फड़के

3 राजपुताना की भूमिका

4 एक भ्रम कि, सिंधिया ग्वालियर स्टेट ने रानी की मदद नही की ।

5 एक अंग्रेज वकील ने रानी को 5 सेकंड के लिए देखा था ।

6 1857 की क्रांति बनाम महारानी लक्ष्मीबाई।

7 अज़ीमुल्ला खां, बेगम हजरत महल , अमरचंद बाठिया

( सन्दर्भ ग्रन्थ )

1 जॉन लेंगे की किताब “wadrings in india”

2 ” चाँद की फास ” अंक 1928 का एक लेख

3 राड्रिक्स ब्रिक्स का तत्कालीन लेख
” Reaction of the kepan malawa and central india .”

यहाँ महारानी लक्ष्मीबाई का जीवन परिचय नही दूंगा अपितु उन घटनाओं का। ज़िक्र करूंगा जो अभी तक बहुत कम लोग जानते होंगे ।
लार्ड डलहौजी की हड़पनीति ने झांसी को अंग्रेजों के आधीन होने पर बाध्य कर दिया । दत्तक पुत्र दामोदर राव को डलहौजी ने राज्य का राजा मानने से साफ मना कर दिया और झांसी को अपने कब्जे में कर लिया ।
इतना ही नही राज्य का सारा खजाना जप्त कर लिया गया था ।
रानी को किला छोड़ कर रानीमहल जाना पड़ा , डलहौजी को इतने में भी संतुष्ट नहीं हो सका , रानी के पति नेवालकर ने ईस्ट इंडिया कम्पनी से कर्ज लिया था , वो कर्ज रानी की सालाना पेंशन से काटने का आदेश जारी किया ।

इस हड़पनीति के खिलाफ रानी ने रानीमहल से ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ इंग्लैंड में मुकदमा दायर कर दिया ।
रानी डटीं रही ।
1854 के गज़ट का उल्लंघन
“”,में अपनी झाँसी किसी भी कीमत पर नही दूंगी चाहे मेरे प्राण चले जाएं””
मामला अदालत में होने से डलहौजी थोड़ा ठंडा हो गया था।
इधर रानी ने रानी महल में सैन्य गतिविधियों को ,ओर भर्ती अभियान चलाया , यहाँ तक की औरतों को भी इस मे शामिल किया गया था।
अस्त्र ,शस्त्र , के योद्धा
1 गुलाम खां
2 ख़ुदा बख्श
3 दोस खां
4 सुन्दर मुंदर
5 काशी बाई
6 मोती बाई
7 लाला भाऊ बख्सी
8 दिवान रगुनाथ सिंह
9 दीवान जवाहर
सहित 1400 योद्धा सैनिकों को युद्ध के लिए तैयार कर रहे थे।
इधर मुकदमे के सिलसिले में रानी ने अपने मुकदमे को इंग्लैंड में लड़ने के लिए एक वकील नियुक्त किया जिसका नाम जॉन लेँगे था ।
मुकदमे के सिलसिले में रानी से मिलने वो भारत मे झाँसी आया , ओर रानी से मुलाकात की , रानी और वकील के बीच एक पर्दा था , दामोदर राव खेलते हुए पर्दे को खींच लिया ।
ये वही क्षण थे जब रानी की एक झलक ज़ोन लेगें ने देखी ।
रानी की छवि भारतीय जन मानस पटल पर हमेशा से एक वीरांगना के रूप में रही हाथों में तलवार पीठ पर दामोदर राव सिर पर पगड़ी , आंखों में ज्वाला मुँह में दांतो से घोड़े की लगाम , ।।
लेकिन वकिल लेंगें ने रानी के सौंदर्य की प्रशंसा अपनी पुस्तक “wadrings in india ” में इस प्रकार से किया
” वो क्षण मेरे लिए अद्भुत थे , जब कुछ पल के लिए महारानी लक्ष्मीबाई की छवि मेरे सामने थी अध्दित्व सौंदर्य की प्रतिमा सी , चेहरा गोल नाक तीखी , स्यामल रंग अद्भुत सौंदर्य था रानी का श्वेत वस्त्र , गले मे शेव्त मोती की माला ।
ओर पर्दा फिर से लगा दिया गया था।””
मार्च 1558 ई में एक बार फिर मुकदमे की परवाह न करते हुए , सर हुय रोज़ ने झाँसी पर आक्रमण कर दिया, तात्या टोपे गुलाम खां ,दोस् खां ओर म्हराबखान ने 20,000 सेनिको के साथ मोर्चा संभाल लिया “काल्पी” में युद्ध हुआ अंग्रेजों को मुँह की खानी पड़ी। और वो पीछे हट गए ।
लेकिन ह्यू रोज़ ने थोड़े समय बाद जबरदस्त आक्रमण कर दिया ,इस बार गोसखां की शहादत हो गयी रानी को तात्या टोपे , मेहराब खान ,गुलाम खां , ख़ुदा बख्श ओर अपने विश्वनीय साथियों के साथ रानी महल भी छोड़ दिया ।
17 जून 1858 , इस बार युद्ध मे रानी स्यवं रणचण्डी बनकर पीठ पर दामोदर राव को बांध कर दोनों हाथों में तलवारें ले कर युद्ध भूमी में उतर गई ।
उधर झँसी में अंग्रेजों ने कत्लेआम किया भारी लुटपाट की ।
बचे योद्धाओं की सलाह पर रानी ने ग्वालियर पर आक्रमण करने का फैसला लिया।
याद रहे ग्वालियर स्टेट अंग्रेजों के आधीन थी ।
इन 10 सालो में
“”लॉर्ड डलहौजी की हड़पनीति””के चलते उत्तरीयभारतियइलाकों के लगभग डलहौजी ने 21000 रियासत को अंग्रेजी हुकूमत में मिला लिया ताकत और जुल्मों सितम से ।
44000 राजघरानों को बर्बाद कर दिया गया था।
एक मात्र चित्तौड़ जहा आज़ादी की जंग 90 वर्ष तक चली ।
यह युद्ध महाभारत युद्ध के बाद का सबसे बड़ा युद्ध था
महारानी लक्ष्मीबाई का घोड़ा ” राजरतन” मारा गया ।
रानी को अब ये अंदेशा होने लगा था कि यह युद्ध उनका अंतिम युद्ध होगा ।
रानी पुरषों का वेष धारण कर रण भूमि को छोड़ दिया
एक झरने के पास रानी का दूसरा घोडा अड़ गया रानी झरने को पार न कर पाई ग्वालियर कोटा के बीच अंग्रेजों ने रानी को घेर लिया ।
एक गोरे ने तलवार से रानी के सिर पर वार किया सिर पर चोट के कारण रानी लगभग अंधी हो रही थी , फिर भी रानी ने उस गोरे को मौत के घांट उतार दिया
गुलाम खा ने पीछे से आकर कुछ गोरो को मार डाला ।
फिर रानी को पास ही जंगलों में एक मठ में ले गया ।
कहीं से एक गोली ओर चली जो रानी की पीठ पर लगी
ग़ुलाम खां रानी की पीठ के पीछे अपनी पीठ लगा कर खड़े हो गए अंग्रेजों की गोलियों ने ग़ुलाम खान को छलनी कर दिया जैसे तैसे रानी ऋषी के मठ तक पहुंची ऋषि ने दौड़ कर रानी को मठ तक ले गए रानी की सांसें अभी चल रही थी , रानी ने केवल अंतिम शब्द बोले ” मेरे शरीर को अंग्रेजों के हाथ न लगने दे ” और प्राण त्याग दिये।
ऋषि ने तुरंत अन्तिमसंस्कार कर दिया ।
जब तक कि अंग्रेज वहाँ पहुंचते सब राख हो चुका था ।
अंग्रेजी अफसर रोज़ ने लिखा ।
No Stuart if one parsent of Indian women be come so made as there giralt is . We will have to all that country.
इधर तात्या टोपे , बेग़म हज़रत महल , अज़ीमुल्ला खां , 1857 की क्रांति में शामिल हो गये।
बहादुर शाह जफर के नेतृत्व में यह क्रांति मेरठ से चली जो लगभग पूरे देश मे फैल रही थीं।
एक अंग्रेज अधिकारी ने बेगम हजरत महल को नर्तकी कहा था ।
अज़ीमुल्ला खां इस क्रांति के आधार स्तम्भ थे ।
नाना साहब ढंतपोट के साथ मिल कर क्रांति की योजना बनाई ।
बाँदा गज़ट ***** एक ऐसी हकीकत जो गलती से अंग्रेजी हुकूमत खुद कर गयी
यह राज़ दफ़न है
1857 की क्रांति के 18 साल पहले चित्रकूट की पवित्र मंदाकिनी नदी के किनारे अंग्रेजों की गो कशी चलती थी
अंग्रेजों ने यहाँ पर गायों को काटने का काम चला रहे थे
गो मांस को वहाँ से नदी के रास्ते अलग अलग जगहों पर बेचा जाता था।
चित्रकूट के निवासियों को यह देखा नही जा रहा था ।
ओर एक दिन वो आया जब चित्रकूट के लोंगो ने उन 7 अंग्रेजों को घेर लिया और सारे आम पेड़ों पर फाँसी लगा दी ।
नवाब निज़ामुद्दीन को तोप से बांध कर उड़ा दिया गया
अहमद वकिल जो मन ही मन अंग्रेजों के खिलाफ दिमाग़ी ज़ंग लड़ रहे थे , उस दिन उस मानसिक ज़ंग को यथार्थ रूप देने का मौका मि गया ।
अहमद वकील ,ओर कुछ महाजन मेज़र जनरल ह्यूरोज़ के स्वागत में उन्हें लेने गए थे , उस से पहले ही अहमद वकिल ने बीच रास्तों में कार ख़ास ओर उनके साथियों ने रोज़ को पकड़ लिया ,
अहमद वकिल ने रोज़ से कहा ये उन मासूमों का बदला है और तुरंत मार डाला ।
इतिहासकार इरफ़ान हबीब का कहना है कि शाहजनाबाद की दीवार से दरियागंज लगा था ।
इसका नाम दरियागंज कब पड़ा , मालूम नही
1857 की क्रांति पर पुस्तकों का संपादन करने वाले मुरली मनोहर सिंह का दावा है कि ,
उस दौर में दरियागंज में मुसलमानों की बस्तियों को जला दिया, औरतों को नंगा कर दिया , चारो ओर खून ही खून दिखाई देता है ।
औरतों की सारेआम अस्मिता लूटी जा रही थी
बच्चो , बूड़ो यूआओ सबको कत्ल किया जा रहा था।
1857 की क्रांति की आग राजपुताना में पहुंच चुकी थी ।
इस क्रांति में कई राजपूत राजाओं ने भाग लिया ।
महत्वपूर्ण
राजपूताना में क्रांति का विस्फोटक 28 मई 1857 को हुआ
, राजस्थान के इतिहास में यह तारीख़ स्वर्णिम अक्षरों में लिखना चाहिए ।
इस दिन दोपहर 2 बजे नसीराबाद में तोपे से गोले दाग कर इस क्रांति में राजपुताना डंका बजा दिया था।

[[Jorj cepsul]]
लिखता है ।
**** मनुष्यों का शिकार****
ओर में जनता हु ,कि इलाहाबाद में बिना किसी कानून कायदे के , बिना तमीज़ के हम लोगो ने सरेआम कत्ल किये , औरतों को जहाँ चाहा , जसे चाहा नंगा कर दिया गया और जिसने चाह उसने उस औरत की अस्मिता को खुले आम लूट लिया गया और ऐसा ऐक दो नही कई सौ बार किया गया ।
हिन्दू , राजपूत , मुस्लिम, सिख सबको ऐसी यातनाएं दी जो आज तक न कभी सुनी न कोई दे पाएगा ।

“” Edword Thoms “”
नामक किताब में बड़े गर्व से लिखा है , पेज न 18
इसी किताब के आगे के पन्नो में पेज न 19 से 20 में लिखा है
मुसलमानों को मारने से पहले उन्हें सुअर की खालों में सील दिया जाता था। सुअर की खाल में जिन्दा इन्सान रहता उसके हाथ पैर बांध दिये जाते थे सुअर की खाल पर सुअर की ही चर्बी मल दी जाती और उसको जला दिया जाता था ।
यह क्रांति दूसरी क्रांति थी पहली बहुत छोटी क्रांति गौकशी के कारण चित्रकूट में हुई थी ।
बाद में मेरठ से 1857 की क्रांति जिसने एक काम किया ईस्ट इंडिया कम्पनी से भारत का शाशन इंग्लैंड की रानी के हाथों में आ गया ।
दूसरा यह कि अंग्रेजों को यह बात समझ मे आगयी थी कि अगर इस देश मे राज़ करना है तो हिन्दू , मुस्लिम ,सिक्ख सबको उनकी धार्मिक भावनाओं से प्रभावित करना होगा।
भारत का विभाजन का कारण भी यही है ।

(यह पोस्ट ऐतिहासिक दस्तावेज पर आधारित हैं पुरत्ताविक खोज नही है , कुछ बाते सही हो सकती कुछ नही भी , किन्तु 98 % सही जानकारी दी गई हैं)
इति
पवन गोड़
पुराविद

पुरातत्व सर.. 1857 का भारतीय विद्रोह की शुरुआत छावनी क्षेत्रों में छोटी झड़प और आगजनी से हुई.. जनमानस में जबरदस्ती या धोखे से ईसाई बनाने की धारणा थी.. मुख्य कारण लॉर्ड डलहौजी की राज्य हड़पने की नीति डॉक्ट्रिन ऑफ़ लैप्स जिसके अंतर्गत झांसी अवध सतारा नागपुर संबलपुर बगैरा आता था..तत्कालीन कारण में एनफील्ड बंदूक 0.577 कारतूस को दांतो से काटकर खोलना पड़ता था… कारतूस के बाहरी आवरण में चर्बी सीलन से बचाने हेतु लगाई जाती थी.. अफवाह थी कि कारतूस की चर्बी गाय..सुअर की है.. आदेश ना मानकर 34बीं बंगाल नेटिव इन्फेंट्री के 85 सिपाहियों की कोर्ट मार्शल की खबर से विद्रोह शुरू..हुआ